गाँव-घर से दूर सहर में रहत जब फगुआ निचकाला त अपनी मन्ने, ना चाही के भी गाँव केफगुआ, फगुनहटी बयार, सम्मति गाड़ल से ले के जरवरे ले, धूरखेलि, लुकारा भाँजल की साथे-साथे होरहा, कचरस, राब, महिया, माई की हाथे के बनावल पुआ आदि खाली मोने ना परेला, दिल-दिमाग में एगो कसको छोड़ि जाला, आँखि की कोरन के भिगो जाला, मन एगो बिरहनि की तरे तड़पि-तड़पि के रहि जाला। सहर के फगुआ मनावल देखि के अपनी मन्ने, सहर की फगुआ के हँसि उड़ावत मन-कोयल गा उठेला-
गाँव-घर से दूर सहर में रहत जब फगुआ निचकाला त अपनी मन्ने, ना चाही के भी गाँव के
फगुआ, फगुनहटी बयार, सम्मति गाड़ल से ले के जरवरे ले, धूरखेलि, लुकारा भाँजल की साथे-साथे होरहा, कचरस, राब, महिया, माई की हाथे के बनावल पुआ आदि खाली मोने ना परेला, दिल-दिमाग में एगो कसको छोड़ि जाला, आँखि की कोरन के भिगो जाला, मन एगो बिरहनि की तरे तड़पि-तड़पि के रहि जाला। सहर के फगुआ मनावल देखि के अपनी मन्ने, सहर की फगुआ के हँसि उड़ावत मन-कोयल गा उठेला-
पानी के किल्लत तोहरी इहां होई,
हमरी इहां पंडोहा जिंदाबाद बा अबहिन,
गोबरे, धूरी के कमी नइखे तनको,
हगलहटी में लसारल आबाद बा अबहिन,
टेक्टरे, पंपुसेटे के जरल मोबिलो खूब बा,
पंडीजी के पकहवा इनार बा अबहिन,
होली गवइया के बुढ़वा गोल त बटले बा,
फिलिमियात नवको गोल तइयार बा अबहिन,
गाँव बा, जवार बा, फगुनहटी बयार बा,
भउजी के गदाइल गाल बा अबहिन,
बुढ़ात होई तोहार सहरिया ए बाबू,
जवनात, फूलात हमार गाँव बा अबहिन।
पिछिला होलिआ के बाति हS।घर से बार-बार फोन आवे कि 'ए बाबू, तूं लोग-लइकन के ले के घरे चली आव अउरी ए बेरी के होली गउँए मनावS।'मलिकाइनियो कहली कि घरे फगुआ मनवले ढेर दिन हो गइल बा, अच्छा रहित की ए बेरी के फगुआ घरहिं मनित। हम सोंचनी की हमहुँ दु-तीन बरीस से फगुआ में घरे नइखीं रहल, त काहें ना ए बेरी के फगुआ घरवे मनावल जाव।आफिस में छुट्टी के दरखास्त फटाफट सेंक्सन हो गइल। हम चारु परानी मतलब मरदे, मेहरारू अउरी दुनु लइकी-लइका फगुआ के दु-चार दिन पहिलहीं घरे पहुँची गइनी जाँ।
घरे पहुंचले की बाद, फगुआ की रंग में हम एइसन रंगि गइनीं की बुझइबे ना करे की हम दु लइकन के बाप हईं।न चाहि के भी एकदम्मे लड़कपन पर उतरि अइनीं। बिहान भइले, गेड़ छिले खातिर भिनसहरे ऊँखिआरी में दनदनात पहुँचि गइनीं। गेड़ छिलले की बाद, बोझा बँधनी अउर उ गेड़ लेहले घर की ओर चल देहनी।गेड़ लेहले अबहिन सेक्टर पर पहुँचनी तवलेकहीं रमेसरी काकी मिल गइली। हमके देखते कहतारी, “ए बाबू,तूँ त फगुआ में कबो घरे ना आवेलS, ए बेरी कई बरीस की बाद पलझल बाड़S।” “का करीं काकी, रोजी-रोटी के सवाल बा, ना त केकरा घर छोड़ी के परदेस में रहे के मोन करी?”, हमरी एतना कहते काकी कहतारी, “अच्छा, ठीक बा, झँटीकट्टा में गेड़ धइले की बाद तनी हमरी दुआरे की ओर उपरहिअS बाबू, कोल्हुआड़ चलता। पीए के कचरसो मिली अउर साथे-साथे गरमागरम महिया।”
झँटीकट्टा में गेड़ धइले की बाद हम भँइसी के नादे पर से उकड़ा के खूँटा पर बाँधि देहनी। ओकरी बाद ओकर ओढ़नी-सोढ़नी ठीक कइले की बाद रमेसरी काकी की दुआरे की ओर चल देहनीं। रमेसरी काकी की दुआरे पर पहुँची के का देखतानी की पिंटुआ गुलवरी झोंकता अउर फगुआ टेरले बा। अपनी आप में ऊ एतना मस्त बा की हमार उहाँ चहुँपल ओकरा बुझइबे ना कइल। हमहीं टोकनी, “अउर हो, पिंटु लाल! का होत जाता, खूब फगुआ टेरतारS।” ए पर पिंटुआ कहता, “भइया तोह लोगन की आसिरबाद से सब बढ़िया चलता। अच्छा कइलS ह की ए बेरी फगुआ में घरे चलि अइलS हS। कचरस पियS, तवकेल कुछ समय में महियो तइयार हो जाई।”हम कहनीं, “हँ बाबू, बहुत दिन हो गइल महिया खइले। कचरस त सहरियो में मिल जाला पर गरमागरम महिया खातिर जीव तरसेला।”महिया-ओहिया खइले की बाद घरे पहुँचनी। घरवों माई 10गो ऊँखी तुड़वा के मँगवले रहे अउर ओ के पेरवा के रसिआव बनववले रहे। ना-ना कहत भर में एगो बड़हन कटोरा में एक कटोरा रसिआव खिलाइए देहलसी।
साझीं खान समति खातिर पतई बिटोरे निकलत रहनीं। तवलेकहीं बाबूजी टोकने, “बाबू इ लइकन के काम ह। अब तूं लइका नइखS”। बाबूजी की एतना कहते, माई कहि परल, “जा बाबू, जा। इहां की बाति पर धेयान मति द। एतना दिन की बाद आइल बाड़S, अपनी मन मोताबिक भगुआ मना लS।”एतना कहले की बाद माई बाबूजी की ओर मुड़लि अउर कहलसि, “अबहिन हमार लइका क दिन के भइबे कइल?जिम्मेदारी उठावल ठीक बा पर अबहिन इ लइके बा।”पता ना माई अउर का-का कहले होई, हम सुन ना पवनीं, काहें कि हम त अब घर की बाहर धरिया गइल रहनीं।
लइकन के लंठई चरम असमान पर रहे। देखते-देखते खमेसर बाबा की गोहरउरी में टूट पड़ने सन। हम घोंघिअइनी की अरे पूरा गोहरउरिया टूड़ि के मति उठा ल कुल। दु-चारगो गोहरा उठाव कुल। पर हमरी बाती पर के धेयान देता। उनकर पूरा गोहरउरी तहस-नहस हो गइल। गोहरा उठा के सब लइका भागत-परात गढ़ही किनारे अइने सन अउर उ पूरा गोहरा समति में डडले की बाद एक बेर फेनु हुमच्चा बाँधि के खमेसर बाबा की खरिहाने में पहुँची गइने सन। ना केहू के रोक रहे, अउर ना टोक। अउर केहू, केहू के सुनलहूँ के तइयार ना रहे। खमेसर बाबा की खरिहाने में पलानी छावे खातिर पतहर गाँजल रहे अउर बगलिए में नेवँछि के पतई धइल रहे। अबहिन केहू कुछ कहो तवलेकहिं सब लूट पड़ने सन अउर केतने बोझा पतहर अउर पतई उठा के गढ़ही की ओर भगने सन।
जहिआ समती फुँकाए के रहे ओही दिन सबेरवें माई मलिया में बुकुआ अउरी कड़ू के तेल ले के अंगना में बइठी गइल अउरी लागली हाँक लगावे, "ए बड़को! ए मझिलो। काहाँ बाड़ु जा हो? लइकवन कुली के भेज जा, बुकुआ लगा दीं।"
भउजी आके माई से कहली, "ए अम्माजी! लइका सब दुआरे खेलताने। हम पानी चलवले बानी। बैठाइनियो अबहिन ले नाहीं अइली। पहिले चलीं हम रउआ के बुकुआ लगा दे तानी अउरी ओकरी बाद रउआँ नहा लीं। जब लइका अइहेंसन त मझिलो चाहें हम बुकुआ लगा देइब जां।"भउजी अउर माई में इ कुल बात चलत रहे, तवलेकहीं हम दुआरे से अइनी।
हमके देखते माई हाँक लगवलसी, "ए मझिलू! अइबS, तनी तोहके बुकुआ लगा लीं। तहके बुकुआ लगवले केतना दिन हो गइल?"हमरा से रहाइल नाहीं अउरी हम छछाके, धधाके माई की लगे पहुँचि के लगनी बुकुआ लगवावे। ओ बुकुआ की बहाने तS हमरा माई के दुलार पावे के रहे।
माई बुकुआ लगावति रहे अउरी हमरा से बतिआवतो रहे। माई कहलसी, "ए मझिलू। तूँ केतना दुबरा गइल बाड़ हो। हड्डी-हड्डी लउकताS।"हम मनहीं में सोंचनी की लइका केतनो मोटाइल होखो पर माई की नजर में उS दुबराइले रही। लइका केतनो खइले होखे पर माई की नजर में उS हरदम भुखाइले रही। धनी हउS ए माई। हम माई के बाती अनसुना की तरे कS के पुछनी, "ए माई! समती की दिने बुकुआ काहें लगावल जाला रे?"
माई भोलापन से कहलसी, "ए बाबू! बुकुआ लगवले की बाद जवन देंही पर से झिल्ली (मइल) छूटेला ओमें सब रोग-बेयाधी रहेला। ओ झिल्ली के समती मइया की संघवे जरवले से सब रोग-बेयाधी जरि जाला। समती मइया सब रोग-बेयाधी ले के अपनी संघे चली जाली।"खैर इ तS सही बाती बा की बुकुआ (उबटन) लगवले से बहुत सारा चमड़ा संबंधित रोग ठीक हो जाला अउरी मनवो खुस हो जाला। जब घरभरी की लोग के बुकुआ लागि गइल तS सब झिल्ली (मइल) एगो कागज में रखी के अउरी दु-चारीगो गोहरा ले के हम संमती में डाली अइनीं।
फेन साझीखान कुछु लइका चिलात अइने कुलि, "चले लइकवा समती के पतई बिटोरे हो, होS।"तवलेकहीं बाबा चिलइने, "भगबS जा की ना। एक महीना से बहुते समती के पतई बिटोरलS जा। जा-जा खा-पी के आवSजा काँहे की 9-10 बजे समती जरावे के बा।"
समती जरवले की जुनी गाँवभर एकट्ठा हो गइल। सब लइका लुकारा बनवले रहने कुली।बुढ़वा पंडीजी आ गइनीं। मुन्नर काका आपन नगाड़ा ले के आ गइने अउरी लगने डमडमावे। पंडीजी समती मइया की लगे कोर कलसा रखववनीं अउरी तेल-बतिहर कS के दीया जरा देहनीं। एक-आधगो मंतर बोलनीं अउरी एक आदमी समती मइया के पाँची भाँवर घुमी के आगी लगा देहल। समती मइया जरे लगली अउरी लइकाकुली लुकारा भाँजे लगने कुली।
बुढ़वा गोल ढोल, झालि ले के लागर फगुआ गावे 'हम सुमिरत पवनकुमार, अंजनी के द्वारे....' तS कहीं केहू जोगिर्रा बोलत नजर आवे, 'फागुनभर बुढ़वा देवर लागे... जोगीर्रा सररर....'।
फगुआ के मजा बा गँउवें में,
कहीं चौताल हS तS कहीं जोगीर्रा,
कहीं भउजी के पेयार हS तS
कहीं गँवई सुगंध से सराबोर माई की हाथे के बनावल पुआ।
समती जरवले की बाद सबलोग अपनी-अपनी घरे आ गइल। बिहाने पहर लइका लगने कुली कहे, "समती मइया मरि गइलीS, पुआ पका के धS गइली, हमनीजन के सुता गइली, सब केहु के खिआ गइली।"हमनियो जान गोल बना के समती मइया की लगे गइनी जाँ अउरी उहवाँ से राखी उठा के एक-दूसरे की कपारे पर लगा के पँवलग्गी अउरी हथमिलउवल भइल, फेनु खूब गोबरSउअल अउरी धुरीखेल भइल। पूरा देहीं गोबर अउरी धूरी में सना गइल रहे।
दुपहरिया में नहइले-धोवले की बाद घर-घर घुमी के फगुआ गावल चालू हो गइल। फगुहरन कुली की उपर लागल रंग अउरी अबीर बरसे। केहु पहिचान में ना आवे। जेकरी-जेकरी दुआरे पर फगुआ होखे ओकरी-ओकरी इँहा से रस चाहें बतासा चाहें लड्डू बाँटल जाव। कुछ लोग छोहारा-गढ़ी भी बाँटें।
हम गाँव की लोगन खातिर परदेसी रहनी ए वजह से जेकरी-जेकरी दुआरे पर जाईं, ओकरी-ओकरी दुआरे पर हमरा के खाए खातिर पुआ, जाउर आदी आवे। हमहुँ हींक लगा के दबा-दबा के खइनीं। गाँव-घर के पयार पा के अघा गइनी।
दूसरे दिने सबेरे चिखुरी बाबा की घरे पहुँचनी। उनकी दुआरे पर कोल्हू चलत रहे अउरी कुछु लइका बहरवें होरहा लगावत रहने कुलि। जब हम चिखुरी बाबा के गोर लगनी तS उ कहने बनल रहु। ए बाबू तें केकरी घर के हउए। तवलकहीं बटोरन काकीबS कहली, "पहिचानत नइखीं; टुन्ना बाबू हईं, सभापति बाबा के नाती, अरे बबुनाजी के मझिला लइका।"एतना सुनते चिखुरी बाबा गदगद हो गइने अउरी कहने, "आउ बाबू, आउ। बइठू, बनल रहू।"तवलेकहीं इयो (चिखुरी बाबाबS) आ गइली। हम उठी के उनहुँ के गोर लगनी।
ईया कहलीS, "होरहा खा अउरी कचरस पिअS, ए बाबू तूँ लाख बरीस जीअS।"एकरी बाद हम लइकन कुली की संघे बइठी के होरहा खइनी अउरी एक लोटा कचरस पिअनी। फगुआ के हुड़दंग अउरी गाँव के पेयार पा के हमार जियरा छछना गइल अउरी सहरिया भुला गइल।
फगुआ के आनंद अउरी उ हो गाँव में। पूछS मति काका। उ गँवई मजा अउरी दुलार कहीं ना मिली। एहि से तS हम एहु बेरि फगुआ खेले गँउवे जातानी। चलS तूँ हूँ, ए काका......होली मनावे गउवें में।
पं. प्रभाकर पांडेय गोपालपुरिया