Quantcast
Channel: भोजपुरी नगरिया (BHOJPURI)
Viewing all articles
Browse latest Browse all 96

जहाँ चुप्पी, उहाँ सांति

$
0
0
     चुप रहीं न जी!!
कहल जाला की सौ बोलता के एगो चुप्पा हरावेला। बोलीं, जहाँ बोले के बा, जहाँ रउआँ लागता की राउर बोलल जरूरी बा, उहाँ बोलीं पर अगर रउआँ लागता की रउरी ना बोलले से बात बन जाई त मत बोलीं, चुप्पे रही जाईं। कबो-कबो कलह आदि के सांत करे खातिर ना बोलल ही ठीक रहेला। कबो-कबो बोलल आगी में घीव के काम करेला अउर बनत बात भी बिगड़ जाला। संजम बहुत जरूरी ह अउर इ बात-विचार में भी होखहीं के चाहीं। अगर रउआँ संजमी बानी त राउर जीवन सुखी बा अउर आस-पास के परिवेस भी। पर धेयान दीं, जब बोलल जरूरी बा, उहां एकदम्मे चुप मति रहीं, बोलीं, आपन बात राखीं, काहें की उहां अगर चुप रहि जाइब त ओसे केहू न केहू के नोकसाने होखी। आज की समय में सबसे बड़हन परेसानी इहे बा की जहाँ बोले के चाहीं, उहां केहू नइखे बोलत पर जहाँ ना बोले के चाहीं उहां सब लोग मुँह बवले गलथेथरई सुरु क देता।
आज की समय में लोग आपन एतना बिबेक खो देता, अपना के एतना ग्यानी समझि लेता की ओकरा इ हे पता नइखे चलत की कहाँ बोले के बा अउर कहाँ ना;का बोले के बा अउर का ना। अब देखीं न, ए ही बोलले की चक्कर में देस, समाज, घर-परिवार में असांति वेयाप्त हो जाता तब्बो लोग बोलले से बाज नइखे आवत। इ सही बात बा की अभिवेयक्ति के आजादी सबके बा पर कुछु भी बोलीं, जवन भी मन में आवे बोल दीं, एकर आजादी त नाहिएं बा। रउआँ अपनी मोने अभिवेयक्ति की आजादी के गलत अरथ लगा ले तानीं। वइसे भी एगो महान संत के उद्गार ह की,
बानी एक अमोल है, जो कोई बोले जानि,
हिए तराजू तौलि के तब मुख बाहर आनि।
एतने ना,इ हो त एकदम सहिए कहल गइल बा की लाठी के मारल भुला जाला पर बाती के ना। ए से सोंचि-समझि के बोलीं। ओतने बोलीं जेतना से बात बनि जाव, बात के बिगाड़ी मत, बात के बढ़ाईं मत। बात-बात में कबो-कबो बात से बात बनि जाला पर बात-बे-बात में कबो-कबो बात से बाति बिगड़ि जाला। हँ, जी पूरा तरे अपनी बिबेक के जगा के रखले के ताक बा, आपन आपा अउर ग्यान पर काबू रखले के ताक बा।
एगो कहानी मोन परता। कहीं पढ़ले रहनीं। रउओं सुन लीं।
एगो गाँव में एगो धनिक परिवार रहे। पर रोज-रोज मियाँ-बीबी में कचकच सुरु हो जा। बाल-बच्चा ए कचकच से आजिज हो गइल रहनेसन, काहें की ओ कुल के लागे की एतना धन-जजाति भइले की बाद भी माई-बाबूजी का जाने कवने बाति पर रोजो कचकच सुरु क देता लोग। ओ कुल के ए कचकच के न आदि समझ में आवे न अंत। बेचारा एकदम से मायूस रहेंसन। एक दिन के बात ह की ओ गाँव में एक जाने साधू अइनें। उ साधू घूमत-घामत ओही परिवार की दुआरी पर पहुँचने। ओ परिवार की दुआरी पर पहुँचि के उ साधू पिए खातिर पानी मँगने। घर में एगो लइका कटोरी में मिट्ठा अउर लोटा में पानी लेहलेनिकलल। उ ओ साधू बाबा के पँवलग्गी क के पानी पिए के दे देहलसि। पानी पियले की बाद साधबाबा पूछने की बच्चा तूँ काफी उदास लागतारS, का बात बा? बतावS, तोहार परेसानी दूर करे के कोसिस कइल जाई। साधू के बात सुनि के लइका आपन परेसानी बता देहलसि। उ साधू बाबा से कहलसि की बाबा, हम अपनी माई-बाबूजी की रोज-रोज की कचकच से परेसान बानीं। ओ लइका के बात सुनि के साधू बाबा ओ के धीरज धरवने अउर कहने की जा घर में पानी ले आ के हमार इ कमंडलु भरि द अउर साथे-साथे अपनी माई के भी बोलवले आवS। लइका घर में जा के एक गगरा बानी ले आइल अउर अपनी माई के भी बोलवले आइल। साधू बाबा गगरा की पानी से आपन कमंडल भरि देहने अउर कुछ मंतर-ओंतर के उच्चारन करे लगने। एकरी बाद साधू बाबा ओ कमंडल की पानी के ओ लइका की ओर बढ़ावत कहने की बाबू इ सिध कइल गइल पानी बा। ए के तूँ कवनो बरतन में ढारि लSएकरी बाद उ साधू ओ घर-मालकिन से कहने की जब तोहार पति घरे आवें अउर तोहसे झगड़ा की लगाइत कुछ कहल सुरु करें त तूँ ए पानी में से एक घोंट पी के ओम के जाप सुरु क दीहS। बार-बार एंगा करबू त एक दिन तोहरी घर के किचकिच पूरा तरे बंद हो जाई।
अब सुनीं आगे के दास्तान, अब जब भी ओ घर के मालिक घरे आवे अउर अपनी मेहरारू से कवनो तकरार वाली बात कहे त उ मेहरारू अपनी मुँहे में, ओ साधू के देहल पानी एक घोंट ले ले अउर मनहीं मन ओम के जाप करे लागे। घर के मालिक केतनो ओरि खोजे पर ऊ मेहरारू बोले ना। कहले गइल बा की एक हाथे ताली ना बाजेला। धीरे-धीरे क के अब ओ घर में तकरार बंद होखे लागल। 10 दिन बीतल पर अब उ पनियो ओराए लागल रहे। एक दिन उ मेहरारू अपनी लइका की साथे ओ साधू की देहल पता पर पहुँचलि। उ मेहरारू ओ साधू से कहलसि की बाबा अब झगड़ा-झुगड़ी में बहुते कमी आ गइल बा पर राउर अभिमंतरित पानी ओरा गइल बा। परोरि के एक गगरा अउर पानी दे दीं ताकी हम घरे ले जा के ध लीं। ओ मेहरारू की ई बात सुनि के उ साधू मुस्कियात कहने की मंतर ओ पानी में ना तोहरी चुप्पी में समाइल बा। सँच कहीं त तोहार चुपिए सबसे बड़ मंतर बा। हम त पानी ए से दे देहनी की जब तोहरी मुँहे में पानी रहि त तूँ जलदी बोलबु ना अउर जाप में लागल रहबू। अब ओ मेहरारू के सब बात समझि में आ गइल रहे।
रउओं समझि गइनीं न। तकरार बढ़वले से बढ़े ला। जरुरत की हिसाब से सांत रहि गइल अच्छा होला। राउर एगो चुप्पी देस, समाज, घर-परिवार में सांती ला सकेला, लोग की चेहरा पर मुस्कुराहट खिला सकेला, एकर धेयान राखीं। जवन भी करीं सांत मन से, बिबेक की उपयोग से करीं, सकारात्मक सोंची, सकारात्मक करीं। जय-जय।

पं. प्रभाकर गोपालपुरिया

Viewing all articles
Browse latest Browse all 96